मध्य प्रदेश के किसानों के लिए एक बड़ी खबर सामने आई है। मुख्यमंत्री मोहन यादव की सरकार ने एक चौंकाने वाला फैसला लेते हुए ऐलान किया है कि राज्य में इस बार मूंग की खरीद न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर नहीं की जाएगी। यह फैसला प्रदेश के लाखों मूंग उत्पादक किसानों के लिए एक बड़ा झटका माना जा रहा है। ऐसे समय में जब फसल तैयार है और किसान मंडियों में मूंग बेचने की तैयारी कर रहे थे, सरकार का यह कदम अनेक सवाल खड़े करता है।
इस लेख में हम विस्तार से जानेंगे कि क्या है यह फैसला, इसके पीछे की वजहें क्या हैं, किसानों पर इसका क्या असर पड़ेगा, और MSP व्यवस्था को लेकर अब तक के विवाद और बहस क्या रही है।
मूंग की खेती: मध्य प्रदेश का कृषि परिदृश्य
1. मूंग उत्पादन में मध्य प्रदेश की स्थिति
मध्य प्रदेश देश के प्रमुख मूंग उत्पादक राज्यों में से एक है। यहाँ के निमाड़, मालवा और बुंदेलखंड क्षेत्र मूंग दाल की खेती के लिए अनुकूल माने जाते हैं। हर साल हजारों किसान रबी और खरीफ सीजन में मूंग की बुवाई करते हैं।
2024 में अनुमानित तौर पर राज्य में 8 लाख हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र में मूंग की खेती की गई थी, जिससे करीब 10 लाख टन उत्पादन की उम्मीद थी।
MSP पर नहीं खरीदी जाएगी मूंग: क्या है सरकार का फैसला?
1. आधिकारिक घोषणा
मुख्यमंत्री मोहन यादव की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट मीटिंग में यह फैसला लिया गया कि राज्य सरकार इस वर्ष मूंग की सरकारी खरीद न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर नहीं करेगी। हालांकि, सरकार यह जरूर कह रही है कि किसान अपनी फसल खुली मंडी में निजी व्यापारियों को बेच सकते हैं।
2. सरकार की दलीलें
- बजट का अभाव: सरकार के अनुसार राज्य के पास मूंग खरीदने के लिए पर्याप्त फंड नहीं हैं।
- भंडारण की समस्या: पूर्व वर्षों में खरीदी गई मूंग का स्टॉक अभी भी गोदामों में पड़ा हुआ है, जिसकी बिक्री नहीं हो पाई है।
- बाजार मूल्य गिरने की आशंका: सरकार को डर है कि भारी मात्रा में खरीदी करने पर मंडियों में मूल्य गिरेगा।
MSP (Minimum Support Price) क्या होता है?
MSP वह न्यूनतम मूल्य होता है जो केंद्र सरकार किसानों को उनकी फसल के लिए सुनिश्चित करती है ताकि उन्हें नुकसान न हो, भले ही बाजार में कीमतें गिर जाएं।
क्यों जरूरी है MSP?
- यह किसानों के लिए एक सुरक्षा कवच है।
- बाजार में मूल्य गिरने पर उन्हें नुकसान से बचाता है।
- इससे किसानों का आत्मविश्वास बढ़ता है और वे अधिक उत्पादन के लिए प्रेरित होते हैं।
2024-25 के लिए मूंग का MSP
केंद्र सरकार द्वारा वर्ष 2024-25 के लिए मूंग का MSP ₹8,682 प्रति क्विंटल निर्धारित किया गया था। पिछले साल यह ₹8,558 प्रति क्विंटल था। यानी इस साल सरकार ने ₹124 की बढ़ोतरी की थी।
परंतु राज्य सरकार ने इस पर खरीद से मना कर दिया है।
किसानों की प्रतिक्रियाएं
1. नाराजगी और विरोध
सरकार के इस फैसले के बाद किसानों में भारी नाराजगी है। कई किसान संगठनों ने इसका विरोध किया है और आंदोलन की चेतावनी दी है। उनका कहना है कि:
- जब फसल तैयार हो चुकी है, तब सरकार ने यह फैसला लिया।
- निजी व्यापारी MSP से काफी कम कीमत पर मूंग खरीदते हैं।
- सरकार का यह कदम किसान विरोधी है।
2. मंडियों में मूंग की कीमतें
राज्य की प्रमुख मंडियों – इंदौर, देवास, खरगोन, नीमच और मंदसौर – में मूंग की वर्तमान औसत कीमत ₹5,500 से ₹7,000 प्रति क्विंटल के बीच चल रही है, जो कि MSP से काफी कम है।
राजनीतिक विवाद और बयानबाजी
1. विपक्ष का हमला
कांग्रेस सहित अन्य विपक्षी दलों ने इस निर्णय पर मोहन सरकार को घेर लिया है:
- कांग्रेस प्रवक्ता का बयान: “यह फैसला किसानों की कमर तोड़ने वाला है। जब तक केंद्र सरकार चुनावों के समय MSP देने की बात करती है, राज्य सरकारें इससे भाग रही हैं।”
- कमलनाथ का ट्वीट: “मोहन सरकार बताए, अगर मूंग MSP पर नहीं खरीदी जाएगी तो किसान जाएं कहां?”
2. सरकार की सफाई
मुख्यमंत्री ने कहा, “हम किसानों के हित में निर्णय ले रहे हैं। हम नई योजना बना रहे हैं जिसमें किसान मंडियों के बाहर भी अपनी उपज अच्छे दामों पर बेच सकें। MSP पर खरीदी से जुड़ी अनेक व्यावहारिक समस्याएं हैं।”
MSP को लेकर देशव्यापी बहस
1. तीन कृषि कानूनों का संदर्भ
MSP को लेकर बहस तब और तेज हो गई थी जब केंद्र सरकार ने तीन कृषि कानून बनाए थे और उसके खिलाफ देशभर में किसान आंदोलन हुआ। उस समय भी किसानों की प्रमुख मांग यही थी कि MSP को कानूनी दर्जा मिले।
2. सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियां
सुप्रीम कोर्ट ने कई बार MSP व्यवस्था की पारदर्शिता और इसके कानूनी दायरे पर टिप्पणी की है।
सरकार का विकल्प: ओपन मार्केट और किसान उत्पादक संगठन (FPO)
राज्य सरकार अब किसानों को यह सलाह दे रही है कि वे:
- मंडी से बाहर खुले बाजार में व्यापार करें
- किसान उत्पादक संगठनों (FPO) के माध्यम से उपज बेचें
- सीधे उपभोक्ताओं और प्रोसेसर्स से संपर्क करें
लेकिन सवाल यह उठता है – क्या इन विकल्पों की व्यवस्था किसानों के लिए सहज और पारदर्शी है?
तालिका: मूंग की कीमतें और MSP का तुलनात्मक विश्लेषण
वर्ष | MSP (₹ प्रति क्विंटल) | औसत मंडी मूल्य (₹) | अंतर (₹) |
---|---|---|---|
2020 | 7,196 | 6,000 | -1,196 |
2021 | 7,275 | 6,200 | -1,075 |
2022 | 7,755 | 6,800 | -955 |
2023 | 8,558 | 7,100 | -1,458 |
2024 | 8,682 | 6,700 (अनुमानित) | -1,982 |
सरकार के लिए चुनौती: कृषि सुधार बनाम किसान असंतोष
मुख्यमंत्री मोहन यादव की सरकार अभी नई-नई बनी है, और यह निर्णय उनके लिए एक राजनीतिक परीक्षा बन सकता है। अगर किसान आंदोलन की ओर बढ़ते हैं या इस फैसले का व्यापक विरोध होता है, तो यह सरकार की छवि को प्रभावित कर सकता है।
कृषि विशेषज्ञों की राय
1. प्रो. आर.पी. सिंह (कृषि विश्वविद्यालय, जबलपुर)
“MSP पर खरीदी बंद करना अल्पकालिक दृष्टिकोण है। अगर किसानों को लागत मूल्य भी नहीं मिल पाया, तो अगली बार मूंग की खेती में भारी गिरावट आएगी।”
2. कृषि नीति विश्लेषक:
“राज्य सरकार को चाहिए कि वह केंद्र के साथ मिलकर एक स्थायी समाधान निकाले। MSP व्यवस्था को कमजोर करना आत्मनिर्भर भारत के सपने को कमजोर करेगा।”
FAQ: अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
Q1. क्या मूंग पर केंद्र सरकार MSP दे रही है?
हाँ, केंद्र सरकार ने वर्ष 2024-25 के लिए मूंग का MSP ₹8,682 प्रति क्विंटल तय किया है।
Q2. क्या मध्य प्रदेश सरकार MSP पर मूंग खरीदेगी?
नहीं, इस वर्ष राज्य सरकार ने MSP पर मूंग की खरीद नहीं करने का निर्णय लिया है।
Q3. किसान अपनी मूंग की फसल कहाँ बेच सकते हैं?
किसान मंडियों में निजी व्यापारियों को या खुले बाजार में अपनी फसल बेच सकते हैं।
Q4. क्या सरकार कोई वैकल्पिक व्यवस्था ला रही है?
राज्य सरकार किसानों को FPOs और खुले बाजार के माध्यम से व्यापार करने के लिए प्रेरित कर रही है।
Q5. क्या इस फैसले का विरोध हो रहा है?
हाँ, कई किसान संगठन और विपक्षी दल इस निर्णय का विरोध कर रहे हैं।
निष्कर्ष: आगे की राह क्या है?
मध्य प्रदेश में MSP पर मूंग की खरीद बंद करने का फैसला किसानों के लिए एक बड़ा झटका है। सरकार की मंशा भले ही वित्तीय और प्रशासनिक कारणों से प्रेरित हो, लेकिन इसका असर किसानों की आर्थिक स्थिति पर पड़ेगा। यदि समय रहते सरकार इस निर्णय पर पुनर्विचार नहीं करती या कोई वैकल्पिक समर्थन योजना नहीं लाती, तो यह कृषि व्यवस्था के लिए घातक हो सकता है।
अब देखने वाली बात यह होगी कि क्या किसान इस निर्णय के खिलाफ आंदोलन करेंगे या सरकार उनकी चिंता को समझते हुए कोई राहत योजना लाएगी।